अंक 1 – क्या है क्लाउड कंप्यूटिंग? क्लाउड आर्किटेक्ट कैसे बनें? | Career as a Cloud Architect
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पॉडभारती के सभी श्रोता मित्रों का इस नए चैनल सोपान में स्वागत है, मैं हूं देबाशीष चक्रवर्ती। मई 2007, यानि कि लगभग 14 वर्ष पूर्व, मैंने अपने मित्र शशि सिंह के साथ इस पॉडकास्ट की शुरुआत की थी। हमारे अंक पत्रिका, यानि मैगज़ीन फॉर्मेट में होते थे। पर यह सफर सिर्फ नौ अंकों तक चला, और नवंबर 2008 में पॉडकास्ट बंद हो गया। 2008 में ही, पॉडभारती टाटा नेन हॉटेस्ट स्टार्टअप पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हुई। हम जीत तो नहीं पाए, पर निर्णय समिति की टिप्पणी थी, “This idea is ahead of its times”।
जाहिर है कि उस समय हिंदी के पॉडकास्ट न के बराबर थे। और इंटरनेट पर सामग्री प्रकाशित करते समय यह ध्यान रखना जरूरी होता था कि लोग कौन सा ब्राउज़र प्रयोग कर रहे हैं। डाउनलोड आसानी से हो सके उसके लिए फ़ाइल का आकार छोटा रखना पड़ता थ। अब तो खैर वह सारी तकनीकी बाधाएं खत्म हो गई हैं, और भले ही भारतीय भाषाओं में उनकी संख्या हमारी जनसंख्या के मुकाबले नगण्य हो, पॉडकास्ट खूब सुने जा रहे हैं। Apple के इतर अनेकों प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध है। जो कमियां अब भी बनी हुई है उनमें स्थानीय भाषाओं के पॉडकास्ट का अकाल, और पॉडकास्ट होस्टिंग में हो रही दिक्कतें शामिल हैं।
बहरहाल, 14 वर्षों के वनवास के बाद हम हाज़िर हैं, एक नए बदले हुए भौतिक और वेब समाज में, इस उम्मीद के साथ कि शायद ही समय सही हो पॉडभारती के वापस आने का। अब ये सफ़र कैसा रहता है, यह तय करने वाले तो श्रोता मित्रों आप ही होंगे। पॉडभारती का यह नया चैनल सोपान केंद्रित है नौकरी, करियर और काम काज की दुनिया पर। सोपान माने सीढ़ी। यानी इस पॉडकास्ट का उद्देश्य है आपके करियर में समृद्धि की सीढ़ी बनना। अगर आप भी इस पॉडकास्ट के आगामी अंकों में शामिल होना चाहते हैं, योगदान देना चाहते हैं, या फिर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं, तो हमें हमारी वेबसाइट द्वारा संपर्क कर सकते हैं।
सुखी जीवन की कुंजी है जापानी पद्धति इकिगाईः अंकुर वरिकु
जिंदगी का उद्देश्य क्या है? जिंदगी का अर्थ क्या है?
बहुत सारे लोग इस सवाल से जूझते हैं। और ये बहुत ही मुश्किल सवाल है क्योंकि यह सवाल हर एक इंसान के लिए व्यक्तिगत है, बहुत पर्सनल है। और इस सवाल का जवाब ही हमें लगता है सबसे महत्वपूर्ण चीज है। पर इस सवाल का जवाब दें भी कैसे, लोगों को पता भी नहीं रहता। आज मैं आपसे बात करूंगा, एक ऐसे कांसेप्ट के बारे में जो जापान में इंट्रोड्यूस हुआ था और इस कांसेप्ट के चलते जापानी लोगों को यह लगता है कि वह इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।
पॉडभारती के श्रोताओं को अंकुर वरिकु का हेलो, नमस्कार, आदाब।
इस स्टोरी की शुरुआत होती है जापान के एक गांव में जिसका नाम है ओकीनावा। ओकीनावा एक बहुत ही साधारण सा गांव है लेकिन, उसकी एक बहुत ही इंट्रेस्टिंग सी आइडेंटी है। और वह यह है कि ओकीनावा में, पूरी दुनिया के मुकाबले, सौ साल से ज़्यादा उम्र के लोग सबसे ज़्यादा है।
काफी साईंटिस्ट्स ने बहुत रिसर्च करके देखा कि कुछ तो ऐसा होगा इस गांव में, इसकी हवा में, यहाँ के लोगों के खाने या दिमाग में, जिसकी वजह से यहाँ इतने सारे लोग, इतनी ज्यादा लंबी उम्र जी पाते हैं। और दूसरी चीज यह है, कि जब कभी भी किसी भी रिसर्च स्टडी ने ओकीनावा के लोगों से पूछने की कोशिश की है, कि क्या वे अपनी जिंदगी में खुश हैं? एक भारी मेजॉरिटी यह बोलती है कि हाँ, मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश हूँ। और ऐसा नहीं है कि उन लोगों के पास बहुत पैसा है। ऐसा भी नहीं है कि वे बहुत बड़े बैंकर हैं, या बहुत बड़े कंसलटेंट हैं। ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी में बहुत ही साधारण से काम कर रहे हैं, लेकिन फिर भी वो अपनी जिंदगी से खुश है। और इस सबको वह एक नाम देते हैंः जिंदगी के उद्देश्य को, जिंदगी के अर्थ को एक नाम देते हैं, और उसका नाम है इकिगाई।
इकिगाई एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ हैः जिंदगी का अर्थ (the purpose of life)। और जापानी इसको बहुत ही साधारण, लेकिन बहुत ही पावरफुल तरीके से इसे समझाते हैं जो मैं आज आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ। और मैं इसकी शुरुआत करता हूं अपनी जिंदगी की एक कहानी से। जब मैं यूएस गया था, 22 साल की उम्र में तो मेरे बहुत ज्यादा ये अरमान थे कि मैं यूएस कि वह पढ़ाई करूं जो मैं करना चाहता था। मैं फिजिक्स की एक पीएचडी डिग्री लेना चाहता था। उसके लिए मैं गया। मैंने बहुत पढ़ाई करी थी उसके लिए, बहुत मेहनत करी थी, बहुत परिश्रम किया था। करीब आठ साल तक मैंने इस ख्वाब को अपने दिमाग में रखा था कि मैं एक दिन यूएस जाऊंगा। और जब वह मैंने सामने हो रहा था तो मेरी खुशी की कोई सीमा ही नहीं थी। मुझे पता था कि मुझे जिंदगी में अब जो सब चाहिए, वह मुझेअब मिल जाएगा।
लेकिन जब मैं यूएस में पहुंचा तो कुछ मिसिंग था। कुछ तो था जो सही नहीं चल रहा था। मैं अपने क्लास में अच्छा परफॉर्म कर रहा था। मैं अव्वल नंबर ला रहा था। मैं फिजिक्स में बहुत ज्यादा अच्छा था। लेकिन अगर मैं अपने दिल पर हाथ रख कर अपने आप से पूछता कि अंकुर क्या तुम खुश हो, तो मुझे ये यकीन हो गया था कि मैं खुश नहीं हूं। मैं इस काम में अच्छा हूं, लेकिन मैं इस काम में खुश नहीं हूँ। और जिंदगी में पहली बार मुझे पता चला कि जिस काम में आप अच्छे हैं और जिस काम से आपको खुशी मिलती है, वह दो अलग अलग काम हो सकते हैं। आज जब मैं इकिगाई के बारे में जानता हूँ, तब मुझे एहसास होता है कि जो मैं 22 साल की उम्र में महसूस कर रहा था, उसका कारण क्या है।
और उसका कारण यह है कि जापानी इकिगाई का कांसेप्ट बोलता हैः हमें अपनी जिंदगी में खुश रहने के लिए, हमें अपनी जिंदगी में अपना उद्देश्य ढूंढने के लिए चार चीजों की जरूरत है। पहलीः वो चीज जिसमें आप अच्छे हैं और हम बहुत सारी चीजों में अच्छे हो सकते हैं। हम गाने में अच्छे हो सकते हैं, हम काम में अच्छे हो सकते हैं, हम सफाई में अच्छे हो सकते हैं, हम खेलकूद में अच्छे हो सकते हैं, हम रिलेशनशिप्स बनाने में अच्छे हो सकते हैं, हम नेटवर्किंग में अच्छे हो सकते हैं, हम इंजीनियरिंग में अच्छे हो सकते हैं, हम कोडिंग में अच्छे हो सकते हैं, हम प्रेशेंटेशंस में अच्छे हो सकते हैं। हम, बहुत सारी चीजों में अच्छे होते हैं, लेकिन यह जिंदगी का सिर्फ एक ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, पूरा नहीं। क्योंकि दूसरा हिस्सा होता हैः हमें किस चीज से खुशी मिलती है।
और यह जरूरी नहीं है कि ये वही चीज हों जिसमें आप अच्छे हैं। ऐसा हो सकता है कि आप इंजीनियरिंग या कोडिंग में अच्छे हैं, लेकिन उसको करने में शायद आपको खुशी महसूस नहीं होती। लेकिन जिंदगी का अर्थ जानने के लिए ये सिर्फ दो ही चीजें हैं। इसके साथ एक तीसरी चीज की भी ज़रूरत होती है। ऐसी चीज है जिसको कर आप पैसे कमा सकते हैं। पर जिस काम में आप अच्छे हैं, जिस काम को करने से आपको खुशी मिलती है, और जिस काम से आप पैसे कमा सकते हैं वह जरूरी नहीं है सेम ही चीज़ें हों। वह अलग-अलग चीजें हो सकती हैं। ऐसा हो सकता है कि आप लकड़ी काट के भी पैसे कमा सकते हैं। ऐसा हो सकता है कि आप Uber और Ola चला कर भी पैसे कमा सकते हैं। ऐसा हो सकता है कि आप एक रेस्तराँ खोल के भी पैसे कमा सकते हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि Uber कैब चलाना आपकी कला हो। यह भी जरूरी नहीं है कि कैब चलाने से आपको खुशी मिलती हो। यह जरूरी नहीं है कि वह रेस्तराँ या किचन खोल के आप कोई ऐसा काम करेंगे जिसमें आप जैनुइलली अच्छे हैं। और यह सिर्फ तीन चीजें है।
चौथी है एक ऐसी चीज जो सारी दुनिया चाहती है। ऐसी कौन सी चीज है? दुनिया को पैसा चाहिए. दुनिया को एडवाइस चाहिए, दुनिया को प्यार चाहिए. दुनिया को बहुत सारी चीजें चाहिए। लेकिन जब आप इन चार चीजों को, सर्कल्स को, जोड़ते हैं, यानि
- आप जिस चीज में अच्छे हैं
- आपको जिस चीज से खुशी मिलती है
- आप जिस चीज से पैसे कमा सकते हैं, और
- कोई ऐसी चीज जिसे दुनिया को जरूरत है,
तब आपको मिलता है आपका इकिगाई। आपको अपनी जिंदगी का अर्थ मिलता है।
अब जानने की कोशिश करते हैं कि कहां हम जैसे बहुत सारे लोग फंस जाते हैं। सबसे पहले एक ऐसी चीज जो हम करते हैं जिसकी दुनिया को जरूरत है, और जिससे हम पैसा कमा सकते हैं। और वह होता है हमारा पेशा (Vocation)। हम जिंदगी में कुछ ऐसा करते हैं जिससे हम खुश नहीं है, जो हम अच्छे से नहीं कर सकते, लेकिन हम करते हैं क्योंकि हम उससे पैसा कमा सकते हैं और दुनिया को उसकी जरूरत है, वह है हमारा पेशा। वो हमारी लाइफ का सिर्फ एक डाईमेंशन है। इन चार चीजों में से सिर्फ दो चीजों का मेल।
इसके इतर, अगर आप कुछ ऐसा करते हैं जिससे आप खुश है, और वह दुनिया को भी चाहिए, तो वह बन जाता है आपका मिशन। बहुत सारे लोग जो एनजीओ में काम करते हैं, उनको उस काम में खुशी मिलती है, और उस काम की वाकई इस दुनिया को, लोगों को, जरूरत भी है। लेकिन क्या उस काम से उन्हें पैसा मिलता है? शायद नहीं। क्या वह इस काम में अच्छे हैं? शायद नहीं। और यह होता है लोगों का मिशन। मिशन इन चार सर्कल्स में से केवल 2 सर्कल्स ही कवर करता है।
अगर आप कुछ ऐसा करते हैं जिससे आप खुश भी हैं और आप उसमें अच्छे भी हैं (something that you love and are really good at) वह आपकी जिंदगी का पैशन बनता है। यह ऐसी चीज है जो आप करना चाहते हैं, इसमें आप अच्छे हैं और उसको करने में आपको खुशी मिलती है। लेकिन जब तक वह चीज आपके लिए पैसा नहीं कमा सकती और जब तक वह ऐसी कोई चीज नहीं है जो दुनिया को चाहिए, वह सिर्फ आपका विज़न, आपका पैशन ही बनकर रह जाएगी।
अंततः, कोई ऐसी चीज जिसको आप करने में अच्छे हैं और जिसको करने से आपको पैसा मिलता है, वह है आपका प्रोफेशन। लेकिन एक ऐसी नौकरी जहां आप इस डर में नहीं जीते कि शायद यह नौकरी मुझसे चली जाएगी क्योंकि आप इस नौकरी में अच्छे हैं। क्या आप उस नौकरी में खुश हैं। शायद नहीं। क्या वो कोई ऐसी नौकरी है जो दुनिया को चाहिए। शायद नहीं।
एक जरूरी चीज यह है कि जब कभी भी आप अपने आप से यह सवाल पूछेंगे कि वह कौन सी चीज है जो मुझे खुश करती है, वह कौन सी चीज है जिसमें मैं अच्छा हूं, वह कौन सी चीज है जो दुनिया को चाहिए वह कौन सी चीज है जिसे मैं पैसे कमा सकता हूं। वह चार चीज जो इकिगाई के लिए जरूरी हैं। ये सारी आपकी अपनी डेफिनेशन है। यह आपका अपना नजरिया है, यह दुनिया का नजरिया नहीं है। क्योंकि किसी हद तक हर एक इंसान जब किसी सोच से प्रभावित होता है वह अपने आपको उसी सोच में ढाल देता है। तो यह बहुत आसान है कि आप किसी भी वक्त पर कोई भी, कुछ भी, चीज करके ही अपने आपको कनविंस कर सकते हैं कि यह दुनिया को चाहिए, इससे मैं पैसा भी कमा सकता हूं, इसमें मैं खुश हूँ और इसको करने में मैं अच्छा भी हूं। यह सिर्फ आप ही की सोच होगी। और जितना आप अपने आपको सच बोलेंगे उतना ही आप अपनी इकिगाई के नज़दीक आएंगे। जितना आप अपने आप से झूठ बोलेंगे कि मैं फलां चीज में अच्छा हूँ या फलां चीज को करने में मुझे खुशी मिलती है, भले ही वह सच न हो, आप अपने इकिगाई से उतने ही दूर भागेंगे।
दोस्तों, इकिगाई का कांसेप्ट बहुत बहुत सिंपल है, लेकिन बहुत पावरफुल है। और मेरी आपसे यह रिक्वेस्ट है कि आप अपने इकिगाई को ढूंढने की कोशिश करिए। एक ऐसी चीज मैं अपने आप को डिवोट करें जिससे आपको पता चले कि आप किस चीज में अच्छे हैं, उस चीज को करने में आपको खुशी मिलती है, उस चीज से आप पैसे कमा सकते हैं और वह एक ऐसी चीज है जो दुनिया को चाहिए। जब आप इन चार चीजों को जोड़कर अपनी जिंदगी कहीं ढूंढ पाएंगे, आपको अपनी जिंदगी का अर्थ अपनी जिंदगी का उद्देश्य मिल चुका होगा। आपको अपना इकिगाई मिल चुका होगा।
संपादकीय नोटः पॉडकास्ट में अंकुर ने भूलवश मिशन और पैशन का वर्णन एक दूसरे की जगह कर दिया है। उपरोक्त नोट्स में दिया वर्णन सही है।
बादल नगर में क्लाउड आर्किटेक्टः मयूर भगिया से साक्षात्कार
1992 कि इस बॉलीवुड फिल्म “खेल” में, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित के किरदार बादलों में घर बसाना चाह रहे थे। वे कामयाब हो पाए कि नहीं यह तो पता नहीं चला, पर 1996 के आसपास कॉम्पैक्ट कंप्यूटर के ह्यूस्टन स्थित दफ्तर में कुछ लोग इंटरनेट पर व्यापार के शुरूआती दिनों का प्रारूप बना रहे थे, जिसे क्लाउड कंप्यूटिंग कहा गया। यह वह ज़माना था जब नेटस्केप ब्राउज़र के डंडे बज रहे थे। इस शब्दावली का प्रयोग 2006 तक व्यापक नहीं हुआ जब तक कि गूगल और अमेज़ॉन ने इसे एप्लीकेशंस और फाइल्स वगैरह डेस्कटॉप की बजाय वेब पर प्रयोग करने के नए तरीके के रूप में पेश नहीं किया। इसके बावजूद ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने 2012 तक क्लाउड कंप्यूटिंग को अपनी डिक्शनरी में शामिल भी नहीं किया था। वेब 2.0 की ही तरह यह कुछ ऐसी शब्दावली है जिसका लोगबाग सही अर्थ नहीं निकाल पा रहे थे। हर किसी के लिए इसका मतलब अलग होता था। आपको याद होगा वह खासा वायरल इंटरव्यू एक सेवानिवृत्त भारतीय आईटी कमिश्नर सेः
विश्वबंधु गुप्ता: “अब जो नया युग आ रहा है, उसके अंदर आपको सिर्फ एक कंप्यूटर के अलावा, जहां पर आप इसको कनेक्ट कर सकते हैं क्लाउड से, उससे आपका सारा सॉफ्टवेयर और आपके सारे डाक्यूमेंट्स आ जाएंगे। अभी तक यह स्टडी नहीं हो पाई है कि क्या बारिश के समय, या जब अंधड़ आता है, क्या इसके अंदर एबेरेशंस आ सकती हैं? अब मान लीजिए आपने यह यूनिक आइडेंटिटी कार्ड बना दिया, पर कभी टेस्ट नहीं हुआ। उसने उस समय दे दिया है। वहां पर आप ने जब बनाया तो उस समय क्लाउड ठीक था, जब आपने क्लाउड सीड किया था (इसकी एक पर्टिकुलर क्लाउड सीडिंग होती है), उस क्लाउड की एक सिचुएशन थी उस क्लाईमेट में। जब आपने उसको चैकिंग करना शुरू किया तो जहां पर चेक किया वहां पर उस समय बारिश हो रही थी। अब वो फॉल्ट दे रहा है कि यह तो आदमी तो वह नहीं है, आपने उसको गिरफ्तार कर लिया”।
आप हंस रहे होंगे, पर बात कंफ्यूजन ही तो थी। हकीकत यह है कि आधुनिक समय में लोगों ने इसकी जगह डिस्ट्रिब्युटेड कंप्यूटिंग या फिर इंटरनेट आधारित सुपर कंप्यूटिंग जैसी अनेक शब्दावलियों का प्रयोग भी किया, पर इसे क्लाउड कंप्यूटिंग कहने में कुछ और ही बात थी। ये एक आसमानी ख्वाब को सच करने जैसा काम था। कुल मिलाकर यह तो माना जा सकता है कि क्लाउड कंप्यूटिंग दरअसल एक मैटाफ़र है, एक रूपक है, आधुनिक कंप्यूटिंग का, जहां सर्वर हमारे घरों या ऑफिसों में नहीं, वरन कहीं और हैं। शायद आसमान में कहीं!
पर भी मानते समय यह जरूर ध्यान में रखिए कि ये सर्वर भौतिक रूप से फिर भी हैं तो। भले ही हमारे घरों या ऑफिसों में नहीं हों, तो किसी और के डाटा सेंटर में तो हैं। दीगर बात है कि इन्हें खरीदना, चलाना और इनका रखरखाव करना हमारी सरदर्दी नहीं है और हम उन्हें सेवाओं या सर्विस के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि आप अपने कंप्यूटर या स्मार्टफोन की स्टोरेज की जगह बचाने के लिए अपनी तस्वीरें गूगल फोटोज़ पर या फिर फाइलें ड्रॉपबॉक्स पर सहेज कर रख सकते हैं या फिर अपने बिज़नेस एप्लीकेशंस एमेज़ॉन वेब सर्विसेज़ पर चला सकते हैं। आपके परिप्रेक्ष्य से यह सब सुरक्षित है, आपके बादल नगर में।
क्रमशः 2020 का दशक और यह क्लाउड शब्द अब शायद एक बच्चा भी जानता है। एक जमाने में इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलिकम्यूनिकेशंस और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री हासिल करने का ख्वाब देखने वाले लोग, अब केवल कंप्यूटर साइंस की डिग्री के लिए चाहतमंद नहीं है बल्कि उस क्षेत्र में भी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग या डाटा साइंस जैसे क्षेत्रों में स्पेशलाइज्ड डिग्री पाने के लिए तत्पर हैं। और इसकी मांग भी काफी है। क्लाउड कंप्यूटिंग का लाभ उठाने वाली हर कंपनी को अपनी इस महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए क्लाउड आर्किटेक्ट की दरकार होगी।
क्लाउड आर्किटेक्ट होता क्या है? क्लाउड आर्किटेक्ट कैसे बना जा सकता है? यह जानने के लिए मैंने बात की अपने सहयोगी और मित्र मयूर भगिया से, जिन्हें आईटी के क्षेत्र में 17 वर्षों का अनुभव है और संप्रति अमेजॉन वेब सर्विसेज में क्लाउड आर्किटेक्ट के पद पर कार्यरत हैं।
देबाशीषः मयूर पॉडभारती सोपान के इस पहले अंक में आपका स्वागत है। आपने हमारे श्रोताओं के लिए समय निकाला इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया! क्यों न शुरुआत आपके परिचय से ही की जाय। अपने बारे में कुछ बताएं।
मयूरः थैंक्यू देबाशीष, मुझे पॉडभारती में बुलाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार। मेरा नाम मयूर है। मैं पिछले 17 सालों से विभिन्न आईटी कंपनियों में काम कर चुका हूं जैसे कि विप्रो, टीसीएस, आईबीएम और एडब्ल्यूएस। मुझे प्रोग्रामिंग करना बेहद पसंद है और यही मुझे उत्साह देता है और मैं मानता हूं कि अभी मेरे लिए बहुत कुछ सीखना बाकी है। It’s still day one.
देबाशीषः Still day one, बहुत खूब मयूर। और बड़ी ही इंट्रेस्टिंग फिलॉसिफी है यह अमेजॉन की, जिसका मूल पर्याय यह है कि आप प्रक्रिया यानि प्रोसेस के जंजाल में ना फंसे, काम के नतीजों पर ध्यान दें। निर्णयों को टाले नहीं और बाहरी ट्रेंड्स को अपनाने में देरी न करें और शायद सबसे ज्यादा जरूरी बात कि अपने ग्राहकों की फिक्र करने का जूनून यानि कस्टमर आब्शेसन आप पर हावी हो। एक तरह से यह जैफ बेज़ोज़ से जुड़ी हुई एक किवदंती है इस संस्थान में। एक मजेदार बात यह भी है कि Amazon के सिएटल स्थित हेडक्वॉर्टर में एक बिल्डिंग का नाम भी Day-1 है।
अब चुंकि बात क्लाउड की हो रही है मयूर तो पिछले कुछ सालों से आईटी के क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग के तो बड़े बोलबाले हैं। आपकी नजर में क्या कारण है कि ग्राहक इस टेक्नोलॉजी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं?
मयूरः देखिए किसी भी कंपनी को सॉफ्टवेयर चलाने के लिए हार्डवेयर की जरूरत होती है जैसे कि कई सारे सर्वर्स, नेटवर्क कनेक्शन, इंटरनेट इत्यादि। पहले जब भी किसी कंपनी को सॉफ्टवेयर सेटअप करना होता था तो वो टेंडर यानि कि RFP से हार्डवेयर खरीदते थे। टेंडर की प्रक्रिया बहुत लंबी होती थी जिसमें टेक्निकल रेस्पांस और कमर्शियल बोलियों के हिसाब से वेंडर का चयन होता था। फिर डाटा सेंटर सेटअप होता था, जिसमें की सर्वर सेटअप, AC, सिक्योरिटी, फायर सेफ्टी और कई नियमों का पालन करना और अनेक आडिट भी करवाने पड़ते थे। इस सब में बहुत समय लगता था और सबसे बड़ी समस्या कि आपको पहले से ही अनुमान लगाना पड़ता है कि आपको कितने सर्वर चाहिए और आपको बहुत सारी राशि अग्रिम चुकानी पड़ती है जिसे कि हम कैपिटल एक्सपेंस भी कहते हैं।
अमेजॉन और कुछ क्लाउड कंपनियों ने यह देखा कि हर कंपनी को, चाहे छोटी हो या बड़ी, इन सारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। तब अमेजॉन ने कुछ बड़े डाटा सेंटर बनाये जिसमे ढेरों सर्वर थे, और उस पर कुछ वेब सर्विसेज लिखी जिससे कि कंपनियां सर्वर यानी वर्चुअल मशीन्स अपनी मांग के अनुसार, जितनी सर्वर की जरूरत है और जितने समय के लिए जरूरी हो, ले सकती हैं। इसे हम आन डिमांड सर्वर प्रोविज़निंग भी कहते हैं। कंपनियाँ अपने उपयोगनुसार भुगतान करती हैं, बगैर किसी अग्रिम प्रतिबद्धता के। इसे हम economies of scale भी कहते हैं। जिसमें बड़ी कंपनियाँ, बड़े डेटा सेंटर बनाकर उसका कॉस्ट एडवांटेज ग्राहकों तक पास आन करती हैं।
देबाशीषः सही कहा आपने। वैसे मयूर आप स्वयं एक क्लाउड आर्किटेक्ट हैं, तो आम तौर पर एक क्लाउड आर्किटेक्ट का क्या काम होता है?
मयूरः कई एंटरप्राईज़ के डेटासेंटर या सर्वर आन प्रेमाइज़ यानि उनके ऑफिस में ही हैं। उनके एप्लीकेशन, डेटाबेसेज़ और फाइल या स्टोरेज सिस्टम आन प्रेम से क्लाउड पर माइग्रेट करने में क्लाउड आर्टिटेक्ट एक अहम भूमिका निभाता है। क्लाउड आर्टिटेक्ट हर एप्लीकेशन के लिये 7R का चयन करता हैं, जैसे कि लिफ्ट एंड शिफ्ट, रीहोस्ट, रीफैक्टर, रीआर्टिटेक्ट इत्यादि।
शेष ट्राँसक्रिप्ट पर काम जारी है, अगर आप सहयोग देना चाहते हैं तो संपर्क करें.
Comments from the old blog
Parag RISBUD (Jun 25, 2021)
Debashish, congratulations. This is a superb initiative. Kudos to you. Extremely powerful compering in pure, immaculate Hindi and natural delivery. @Mayur hats off to the way you explained in Hindi….way to go to reach out to large number of learners.
Ravi Ratlami (Jun 29, 2021)
देबू भाई को बधाई. दरअसल, पॉडभारती हिंदी जब शुरू हुआ था, तो वो अपने समय से कोई दो दशक आगे था. चलिए, अब यह समय से कदमताल करते अपनी पहचान बनाएगा. शुभकामनाएँ.