अंक 6 : भारत, ऑलवेज टर्न्ड ऑन
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पॉडभारती के सभी श्रोताओं को हमारी ओर से स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई। हम प्रस्तुत हैं पॉडभारती के छठवें अंक के साथ, जिसमें आप सुन सकते हैं
- इंटरनेट का प्रादुर्भाव बढ़ रहा है, वेब 2.0 के साथ ही रिच क्लाएंट की बातें होती हैं और ज़ाहिर है कई कंपनियाँ मानती हैं कि अब आपका ब्राउज़र ही आपका पीसी है। ऐसे ही एक जालस्थल निवियो डॉट कॉम की समीक्षा कर रहे हैं हमारे टेक गुरु रविशंकर श्रीवास्तव।
- लंदन से नीरू कोठारी पेश कर रही हैं युरोप की खबरें और
- अंत में सुनिये हमारे साठवें स्वतंत्रता दिवस पर एक विशेष प्रस्तुति जिसमें आप सुन सकेंगे रविंद्रनाथ टैगोर की दुर्लभ रिकार्डिंग।
Comments from the old blog
G Vishwanath, Aug 19th, 2007
- Always turned on: कुछ समय लगा हमारे लिये web site का सही नाम और सही spelling पहचानने में। हिन्दी में निवियो डॉट कॉम लिखने के बजाय बहतर होता अगर आप नाम nivio.com लिखते। नहीं तो यह स्पष्ट नहीं होता कि web site क्या है। nivio, niviyo, neeviyo इत्यादि कुछ भी हो सकता है। रविशंकर जी की राय से मैं सहमत हूँ। जब कोई चीज़ हमारे पास पहले से ही हो तो बाहर दूर जाने की क्या आवशयकता है? आजकल 1Gb से लेकर 8 GB capacity तक के pen drive आसानी से उपलब्द हैँ और महँगे भी नहीं है. मैं तो अपने files अपने पास रखना पसन्द करूँगा। क्यों किसी अनजान और गुमनाम PC par पर रखें जहाँ file तक पहुँचने के लिये internet की ज़रूरत है। हाँ यह ठीक है कि हम दुनिया के किसी भी PC पर अपनी files तक पहुँच सकते हैँ।लेकिन इसके लिये भरोसेमंद internet connection की ज़रूरत है। यह भी विचार करने वाली बात है कि हम आजकल laptop और palm top computers के युग में जी रहे हैँ। मुझे नहीं लगता कि यह योजना सफ़ल होगी। कुछ साल पहले Net PC की बात चल रही थी। क्या हुआ? Net PC flop हुआ। एक और बात मेरी समझ में नहीं आयी। Invitation के लिये पंजीकरण के बाद एक महीना क्यों? आजकल एक महिने में ज़माना बदल जाता है। किसके पास है इतना समय और धीरज? एक महीने तक किसीकी रुचि टिकी रह सकती है? इसके अलावा, जैसे रविशंकर जी ने कहा, हिन्दी वालों के लिये कोई प्रस्ताव या आकर्षण प्रदान नहीं. इस समय यह केवल एक रचनात्मक प्रयोग है और इसके बारे में अब निर्णय लेना उचित नहीं होगा। आगे चलकर देखते हैँ इस प्रयोग का क्या नतीजा निकलता है।
- नीलू कोठारी का report: recording quality में कमी थी. Eiffel tower को देखने के लिये पचासी हज़ार भारतीय पर्यटक Paris पहुँचे? हाल ही में मैने अखबार में पढ़ा था कि विश्व के पर्यटकों को Eifel Tower ने ही सबसे ज्यादा हताश किया था। London में धूप? मनोरंजक बात है ! इसे हम छापने लायक समाचार समझते हैं ! जब भारत में धूप निकल आता है कोई ध्यान ही नहीं देता ! picasso के paintings कि चोरी के बारे में मेरे मन में सवाल उठता है : चोर क्यों नहीं समझते कि इन चित्रों को बेचना कठिन होगा। खरीदने वाले इन चित्रों का कैसे प्रदर्शन करेंगे? कब तक बंद कमरों के चार दीवारों के बीच इन चित्रों को अकेले में निहारते रहेंगे? ऐसी चोरी और खरीदी से क्या फ़ायदा?
- देशभक्ति के गाने: वन्दे मातरम की याद भी आई। ऐसे गाने आजकल सुनने को कहाँ मिलते हैं? रबीन्द्रनाथजी की अवाज़ सुनकर संतुष्ट हुआ. पहले कभी सुनने का मौका नहीं मिला था। क्या गाँधीजी, नेहरूजी, राजाजी, वल्लभभाई पटेलजी वगैरह महापुरुषों की आवाज़ भविष्य में सुनने को मिलेंगे? Podcast सुनकर खुशी हुई. अंक ७ की प्रतीक्षा में और शुभकामनओं के साथ, G विश्वनाथ
श्याम पाण्डेय, Aug 23rd, 2007
पोड भारती के समुह को नमन| यह पोड कास्ट बहुत अच्छा था| मुझे सुनने मे बहुत मजा आया| देबासीस की आवाज बहुत मधुर है पर थोड़ा सा धीमा बोलते है… मतलब बोलने का लय और ताल थोड़ा सा धीमा है पर और भी मधुर होगा जब ‘अमीन सायानी जी’ की तरह थोड़ी सी गहराई लाने का प्रयत्न करें| नीलू कोठारी का report अच्छा था पर हमे भारत पर आधारीत report सुनना ज्यादा पसंद करेंगे |
नीरज दीवान, Aug 23rd, 2007
अमीन सयानी की तरह तो क़तई न बोलें देबू दा.. बस ज़रा पिच हाई कर लें.. ज़रा-सी ताक़ी हम श्रोता सहजता से सुन सकें। टेक गुरू हमेशा की तरह उम्दा हैं। जानकारी अच्छी होती है। किंतु एक बात खटक रही है। ब्लॉगजगत की खबरों या विमर्शों को शामिल करिए। या फिर नवागंतुक चिट्ठाकारों से परिचय कराएं। वरिष्ठजनों के इंटरव्यू तो बहोत हो चुके। नए लोगों को भी अपनापन दे सकें तो सार्थकता होगी।
Debashish, Aug 24th, 2007
मित्रों, एपसोड सराहने के लिये और अपनी राय जताने के लिये शुक्रिया। विश्वनाथ जी, नीरज, श्याम ये सच है कि इस बार की रिकार्डिंग की गुणवत्ता खराब रही। आवाज़ की पिच का भी हम भविष्य में ख्याल रखेंगे। ये स्वीकार करने में हमें संकोच नहीं कि आडियो संबंधी तकनीकी समझ धीरे धीरे मैं और शशि ग्रहण कर रहे हैं, मुझे बताते हुये खुशी हो रही है कि हम अच्छी रिकार्डिंग के लिये निजी स्तर पर नये उपकरणों के लिये खासी रकम अपनी जेब से खर्च करने जा रहे हैं।
रही बात अमीन सायानी की नकल कि तो मैं तो रेडियो की खुराक पर ही बड़ा हुआ हूं, अमीन, मनोहर महाजन, हरीश भिमाणी जैसी आवाज़ों का मुरीद हूं, शायद अनजाने ही नकल हो जाती होगी, असलियत तो यही कि उनकी नकल कर पाने का भी माद्दा अपन में नहीं।
यकीन मानिये कि हम आवाज़ के लिये कोई विशिष्ट प्रयास नहीं कर रहे, हम वैसे ही बोल रहे हैं जैसा कि हमें लगा कि रेडियो पर बोलना चाहिये, हमारा सारा ध्यान सामग्री पर ही रहता है क्योंकि हमें विश्वास है कि आप जैसे श्रोता हमारी आवाज़ के दम पर नहीं कंटेंट के दम पर ही हमें दुबारा सुनने आयेंगे। भविष्य के लिये हमारी ढेरों योजनायें हैं, बस आपका साथ चाहिये, सिर्फ श्रोता के तोर पर नहीं, सहयोगी के रूप में भी।
Shyam Pandey, Sep 4th, 2007
देबाशीष को भाषा इंडिया के वेबसाइट पर देखकर मन प्रसन्न हो गया…
प्रमेन्द्र, Sep 7th, 2007
अच्छा कार्यक्रम लगा, पिछले कुछ दिनों से स्पीकर और हेडफोन की अनुपलब्धता के कारण कार्यक्रम सुन नही पा रहा था। अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा।
Shailendra Singh, Sep 7th, 2007
First of all congratulation for the concept. Secondly, how i can contribute to this medium. can i simply draft my work and paste it in the comments section or what? please guide me.