अंक 5 : थम न जाये जलधारा

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पॉडभारती का यह पांचवा पड़ाव है। इस पड़ाव पर संगीत के माध्यम से हम विचार करेंगे मानवता के सामने उभर रहे सबसे बड़े संकटों में से एक, यानी सिकुड़ रही जलधारा के बारे में। इसके अलावा नारी अधिकार और आतंकवाद जैसे मुद्दे भी इस अंक में शामिल है। इस अंक की विषयवस्तु कुछ यूं है:

  • जलसंकट पर दैनिक भास्कर समूह में संपादक विकास मिश्र की संक्षिप्त वार्ता
  • जल–संरक्षण के मुद्दे पर दो खूबसूरत गीत, मशहूर ग़जल गायक भुपिंदर सिंह और रघुनाथ सरन की आवाज़ में
  • किरण बेदी के साथ हुये अन्याय के बहाने नारी अधिकारों की बात कर रही हैं मुम्बई से वरिष्ठ पत्रकार सीमा अनंत
  • ब्रिटेन में ग्लासगो मामले के बाद के हालात पर लंदन से नीरू कोठारी की खास रिपोर्ट

Comments from the old blog

Shyam Pandey, Aug 1st, 2007

Pretty good!

Pankaj bengani, Aug 1st, 2007

Badhiya

हर्षवर्धन, Aug 2nd, 2007

अच्छा है पूरी टीम सक्रिय है। रघु मेरे मित्र हैं इसलिए ये तो जानता था कि इनका गला सुरीला है। लेकिन, इस गले की की रुत इतनी सुहानी है, ये आज ही पता चला। बहुत बढ़िया रघु बाबू लगे रहिए। सीमा के बारे में मैं समझता था कि ये आमने-सामने की बहस में ही बढ़िया है। लेकिन, ये तो, और भी बढ़िया है।

शशि सिंह, Aug 2nd, 2007

हर्ष बाबू, रघु के बारे में आपकी राय सौ फीसदी सही है। मगर एक गड़बड़ी हो रही है आपसे… इस एपिसोड में जिस सीमा जी को आपने सुना वे हम सबकी वरिष्ठ सीमा अनंत जी है न कि सीमा मिश्र :) वैसे आप बहुत जल्दी सीमा मिश्र को भी पॉडभारती पर सुन पायेंगे।

G Vishwanath, Aug 3rd, 2007

यह मेरी पहली कोशिश है हिन्दी में लिखने की, अब तक अंग्रेज़ी में लिखा करता था. अभी तक चाहते हुए भी हिन्दी में टिप्पणि नही कर सका. आज पहली बार Baraha Software के माध्यम से मै हिन्दी में टिप्पणि भेज रहा हूँ. देभाषिश भाइ को धन्यवाद, जिन्होंने email द्वारा तरीका समझाया. Podcast download कर चुका हूँ, podcasts को मैं अपनी Ipod पर सुनना पसन्द कर्ता हूँ. आशा है कि इस शनिवार / रविवार को फ़ुरसत मिलेगी. सुनने के बाद टिप्पणि करूँगा, हिन्दी मेरी मातॄभाषा नहीं है. भाषा, व्याकरण और spelling में गलतियाँ हो सकती है. कॄपया क्षमा करें, G. विश्वनाथ, J. P. नगर, बेंगळूरु

G Vishwanath, Aug 11th, 2007

एक और रोचक podcast के लिये बधाई। टिप्पणि भेजने का वादा किया था। आज समय निकाल सका।

  • भारत की नदियाँ: कहा गया है कि भारत की नदियों के पानी में अरब देशों के तेल से ज्यादा धन छिपा है। तेल का धन एक न एक दिन खर्च हो जाएगा लेकिन भारत का यह धन कभी खत्म न होने वाली परिसम्पत्ति है। यह भी कहा गया है कि भविष्य में राष्ट्रों के बीच, जंग पानी को मुद्दा बनाकर लड़े जाएंगे। ईश्वर की असीम कृपा से भारत में पानी की कोई कमी नहीं है लेकिन कभी कभी मैं सोचता हूँ कि क्या हम इस कृपा के लायक हैँ? अनेक क्षेत्रों में हमने प्रगति की है लेकिन यह बाढ़ और सूखे का कालचक्र हमें अब भी परेशान करता है और इस समस्या का आज तक हमारे पास कोई हल नहीं। मेरी राय में सभी नदियों का पानी हमारे लिये पवित्र होना चाहिये न सिर्फ़ गंगा का।
  • किरण बेदी का supersession: सरकार जो भी कहें, मेरे विचार से इसके दो कारण हो सकते हैं जिन्हें सरकार कभी क़बूल नहीं करेगी। – मर्द का अहंकार: वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ज्यादातर मर्द ही होते हैं। किरण बेदी चाहे कितना भी सक्षम क्यूँ न हो, इन पुलिस अधिकारियों को एक महिला के अधीन काम करने पर अवश्य संकोच होगा। अपनी मर्दानगी को चोट लगेगी। शायद यह पुलिस अधिकारी असहयोग की धमकी देकर सरकार को मजबूर कर रेहे हैं। यह तो अजीब व्याजोक्ति है कि सोनिया महिला होते हुए भी ऐसा हुआ। मर्द मन्दिर जाकर दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वति देवी के सामने घुटने टेक सकते हैं लेकिन घर लौटकर अपनी अधिक प्रतिभाशाली या सफ़ल पत्नियों पर अधिकार जताते न चूकते। – सरकार का अपना हित और शायद स्वार्थ भी: किरण बेदी कोई साधारण महिला नहीं है। सरकार (यानि सोनिया गाँधी) को पहले से ही प्रधान मन्त्री के पद पर काबू है। अब राष्ट्रपति के पद पर भी काबू है। शायद सोनियाजी एक “लचीला” अधिकारी चाहती थी जिसे वह अपनी पार्टी के हित के लिये अपनी उंगलियों पर नचा सकगी. निस्सन्देह, किरण इसमे अपना सहयोग नहीं देती और इसकी कीमत उसे चुकानी पड़ी। सरकार का बहाना हास्यास्पद है। कहा गया है कि किरण Active Policing से कई सालों से दूर रही है। सरकार क्या अपेक्षा करती है ? क्या किरण बेदी इस उम्र में भी चौराहे पर खडी होकर सीटी बजा बजाकर traffic control करें? या फिर नगण्य और तुच्छ जेबकतरों के पीछे पीछे भागें? १९८४ में जब राजीव गांधी को प्रधान मन्त्री बनाया गया, क्या वे active politics से जुडे हुए थे? राबड़ी देवीजी active cooking से जुडी हुई थी और अचानक लालूजी की कृपा से रातों रात मुख्य मन्त्री बन गयी। मैं आशा करता हूँ कि यह मामला अदालत को सौंपी जायेगी।

बस अब इतना ही. Podbharti अंक ६ की प्रतीक्षा में