अंक 3 : मायावती पर फ्रेश रिलायंस
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पॉडभारती के पॉडज़ीन स्वरूप में इज़ाफा करते हुये हम इसके तृतीय अंक में सामयिक घटनाओं के विश्लेषण शामिल कर रहे हैं। हमारे तृतीय अंक में आप सुन सकते हैं,
- पॉडभारती के विगत अंकों पर श्रोताओं की राय का अवलोकन व हमारी प्रतिक्रिया,
- 13 मई 2007 को राँची में रिलायंस फ्रेश सुपरमार्केट पर पथराव की घटना के दूरगामी परिणाम देखने का प्रयास अफलातून देसाई और आलोक पुराणिक के साथ और
- उत्तर प्रदेश के असेंबली चुनाव में बसपा को मिले बहुमत के निहितार्थ बताती सृजन शिल्पी की विशेष वार्ता।
With the addition of a podzine format to Podbharti, we are incorporating analysis of current events in its third issue. In this issue, you can listen to:
- An overview of listener feedback on previous Podbharti issues and our responses,
- An attempt to examine the long-term consequences of the stone-pelting incident at Reliance Fresh Supermarket in Ranchi on May 13, 2007, with insights from Aflatoon Desai and Alok Puranik, and
- A special discussion by Srijan Shilpi on the implications of BSP’s majority win in the Uttar Pradesh Assembly elections.
Comments from the old blog
Kakesh, May 21st, 2007
अच्छी रही ये प्रस्तुति भी…
Alok Puranik, May 21st, 2007
I listened to the Reliance Fresh story. Great! You people are pioneer in Hindi podcasting, accept my congratulations. My recording quality was poor, next time pl call me on landline for recording purpose. The retail story could be enriched by taking bites of 1-2 cutomers of reliance fresh, whether they are they happy or not. All the best.
समीर लाल
अब क्या कहें?? इतनी बेहतरीन प्रस्तुति के लिये देबाशीष और शशि भाई को बहुत बधाई. अब भाई, अपना एफ एम बैन्ड शुरु कर ही दो. बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण-बहुत अच्छी विषय वस्तु-और बहुत अच्छा संकलन.
May 21st, 2007
sanjay bengani, May 21st, 2007
बहुत ही सुन्दर साफ आवाज वाली प्रोफेशनल प्रस्तुति. बधाई स्वीकारें.
श्री नारायण शुक्ल, सिंगापुर, May 21st, 2007
बहुत सुन्दर, जी खुश हो गया सुनकर। टीम के सारे सदस्यों को मेरी हार्दिक बधाई!
PRAMENDRA PRATAP SINGH, May 21st, 2007
बहुत ही अच्छा कार्यक्रम लगा। पाडभारती परिवार को बधाई। एक आर्थिक विचार के सम्मुख अफलातून जी के विचारों ने मुझे प्रभावित किया। इस सम्बन्ध मे मेरे काफी कुछ विचार अफलातून जी से मिलते थे।
सृजन जी के कुछ बातों से मे सहमत नही हूँ। मुझे अनुमान था कि भाजपा गर्त मे जायेगी किन्तु इतना जायेगी इसका अनुमान न था। इसका पूरा श्रेय प्रदेश के मुखिया केसरी नाथ त्रिपाठी पर जाता था। उन्होने सपा से साथ जो मित्र वत व्यवहार निभाया उसी का परिणाम है कि वे अपनी खुद की सीट भी न बचा सकें। यह कहा जाना कि यह माया के कुशल नीति की जीत है तो यह कहना बेमानी होगा। क्योकि माया – मुलायम जैसे व्यक्तिवादी लोग ज्यादा दिनों तक सत्ता लाभ नही ले सकते है। जनता द्वारा माया के सिर पर दिया गया पूर्ण बहुमत का ताज काटों भरा है। निश्चित रूप से अगर ख्ण्डित जनादेश होता जो अगले चुनाव मे माया की माया इससे भयंकर बहुमत ले कर आती। अब तो कह पाने कतई संकोच नही होगा कि माया 2009 या इससे पहले होने वाले लोक सभा मे अपनी यह हैसीयत बचा बाती है या नही।
जीतू, May 21st, 2007
निश्चय ही अच्छा होगा, शाम को घर से सुनूंगा। पिछले एपीसोड भी काफी अच्छे थे, इसलिए आगे भी उम्मीदे बढ गयी है, आशा है आप हमारी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। पॉडकास्टिंग निहायत ही, समय लेने वाला और मेहनती काम होता है। इसमे पॉडकास्टिंग के प्रति लगन रखने वाल बन्दा ही इसे लगातार चला सकता है। इसके लिए पॉडभारती की टीम, बधाई के काबिल है। शशि और देबू से उम्मीदे है कि हाई स्टैन्डर्ड बनाए रखेंगे।
अफ़लातून, May 21st, 2007
देबाशीष को एक सलाह : मेरे असम्पादित वक्तव्य के छँटे हिस्से से तथ्य खुद के वक्तव्य में लेना सम्पादकीय विशेषाधिकार नहीं है ।
सृजन शिल्पी, May 21st, 2007
पॉडभारती के प्रस्तुतिकरण में निरंतर निखार आ रहा है। प्रोफेशनल अंदाज़ और ब्लॉगिया मिजाज़, दोनों का सुन्दर समन्वय दिखता है इसमें। @प्रमेन्द्र, मैं आपसे सहमत हूँ। मायावती बेहतर शासन और स्थायी विकास के रास्ते पर उत्तर प्रदेश को ले जाएंगी, ऐसी उम्मीद मुझे कतई नहीं है। जातिगत समीकरण लंबे समय तक कारगर नहीं हो सकते, यह कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के हश्र से साबित हो चुका है। सुशासन और विकास ही लोकतांत्रिक राजनीति में स्थायी रूप से टिकने का रास्ता है। लेकिन हमारा समाज अभी इतना परिपक्व नहीं है जो राजनीतिक दलों को अपने इरादे और चरित्र को बदलने के लिए बाध्य कर सके। हमें कम से कम एक दशक तक इंतजार करना पड़ेगा, इसके लिए।
@अफ़लातून जी, देबू दा शायद आपकी सलाह पर स्पष्टीकरण देना चाहें। लेकिन जहां तक मैं समझता हूँ कि तथ्यों और आँकड़ों के मामले में स्वत्व का दावा नहीं किया जा सकता, यदि उनके मूल स्रोत आप न हों। हाँ, आपके विचार और विश्लेषण पर आपका कॉपीराइट है, उसे कोई संपादक अपना बनाकर पेश नहीं कर सकता। लेकिन तथ्यों और आँकड़ों को जुटाने में आपकी मेहनत के लिए आभार जताया जाना चाहिए।
जगदीश भाटिया, May 21st, 2007
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती। अफलातून जी और आलोक जी को लाकर स्टोरी में दोनो तरफ के विचार जानने को मिले। सृजन जी का लेख पहले पढ़ लिया था मगर उनकी अपनी आवाज में सुनना अलग मायने रखता है। शुरुआत में चुटीले तरीके का प्रस्तुतीकरण भी अच्छा लगा।
Ddebashish, May 22nd, 2007
प्रिय अफ़लातून जी, मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ कि आपने अपना पक्ष रखा। पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि आपको किस बात पर आपत्ति है, क्या हमने आपके बताई किसी बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया या आप चाहते थे कि हम हर तथ्य के साथ ये कहते कि फलां बात अफलातून जी ने कही? मैं आपकी बात से सहमत नहीं कि आपके बताये तथ्य, जो आपने जनगणना आँकड़ों से उद्धत किये, को अपने आलेख का हिस्सा बनाना ग़लत था। मुझे याद नहीं कि मैंने आँकड़ों के अलावा आपकी किसी बात को अपना बना कर पेश किया, यदि ऐसा है तो अवश्य बतायें। आँकड़ों के लिये, एपीसोड के परिचय में बताया गया है “राँची में रिलायंस फ्रेश सुपरमार्केट पर पथराव की घटना के दूरगामी परिणाम देखने का प्रयास अफलातून देसाई और आलोक पुराणिक के साथ”, आप और आलोक के आलेख में योगदान की बात हमने सहर्ष स्वीकारी है।
तथ्यों का सामने आना ज़रूरी है, और पत्रकारिता की मूल अवधारणा को बनाये रखते हुये मैं हर मुद्दे पर निष्पक्ष रुख बनाना चाहता हूँ, चाहे वो निरंतर पर कोक मामले पर बहस हो या ये किस्सा। आप मेरे वरिष्ठ हैं और यदि अब भी आपको लगता है कि आपके साथ ज्यादती हुई है तो मैं एपीसोड बिना किसी हिचक के वापस लेने को तैयार हूं।
पंकज बेंगानी, May 22nd, 2007
बहुत सुन्दर. बधाई स्विकारें.. एक दम ऐसा लग रहा था जैसे विविध भारती सुन रहा हुँ. खूब!
अफ़लातून, May 22nd, 2007
मेरी टिप्पणी के सन्दर्भ में सृजन शिल्पी की टिप्पणी में चौंकाने वाला यह है कि उन्हें कैसे पता चला कि जिसे मैंने ‘मेरे असम्पादित वक्तव्य के छँटे हिस्से से तथ्य खुद के वक्तव्य में लेना’ बताया है वे आँकड़े ही थे? मेरी टिप्पणी पर देबाशीष ने ईमेल द्वारा मुझ से जोगा-जोग किया उसे उन्होंने आंशिक तौर पर बतौर टिप्पणी भी दे दिया है इसलिए यह आवश्यक है कि मेरे जिस पत्र के उत्तर में देबाशीष की टिप्पणी है उसे भी यहाँ दे दिया जाए :
प्रिय देबाशीष, आप ने किसी बात को तोड़ा-मरोड़ा नहीं है। जो तथ्य सार्वजनिक हों लेकिन आपने ने न जुटाए हों, मैंने असम्पादित वक्तव्य में दिए हों, उन्हें मेरे वक्तव्य का हिस्सा रहना चाहिए था। मैं एक पक्षकार के रूप में आपके कार्यक्रम का हिस्सा था तथा उन तथ्यों को अपने पक्ष के मजबूती के लिए पेश किया था। चर्चा पेश करने वाले के रूप में आप निर्गुण – निष्पक्षता से बात रख रहे थे इसलिए उन महत्वपूर्ण तथ्यों का वजन घटा। इसीलिए मेरे वक्तव्य से cut हो कर आपके वक्तव्य में paste हो जाना पत्रकारीय मानदण्ड पर उचित नहीं है। अगर अभी भी आप मेरी आपत्ति को उचित नहीं मानते हैं तब आप इसे हटा सकते हैं, सिर्फ मेरे वरिष्ट होने के नाते बिलकुल न हटायें। अफ़लातून
जीतू, May 22nd, 2007
बहुत शानदार! मजा आ रहा है। थोड़ा म्यूजिक लाउड है, उसको लाइट करें और यदि हो सके, तो कोई भारतीय वाद्य यत्र जैसे सितार, वाला लगाऎं। देबू की आवाज तो बहुत शानदार है, एकदम एफ़एम क्वालिटी। आवाज सुनकर, बीबीसी हिन्दी की याद आ जाती है। इतनी अच्छा संचालन और साथ ही बिना गलती किए लगातार बोलना, एकदम प्रोफ़ेशन टच है भई। देबू को ढेर सारी बधाई। एडिटिंग का काम बखूबी किया गया है, शशि को इसके लिए बहुत बहुत बधाई।
sanjay patel, May 24th, 2007
शशिजी…पाड भारती का तीसरा अंक सुनते हुए महसूस किया कि प्रसारकों को उच्चारण पर विशेष ध्याय देना चाहिये..आपको माध्यम श्रव्य माध्यम है सो अधिक सतर्कता ज़रूरी है. यदि उर्दू शब्दों को इस्तेमाल में ले रहे हैं तो फिर ये अवहेलना नहीं चलेगी.एक बात ध्यान रखें…जैसा बोला या लिखा जा रहा है या छ्प रहा है वैसा ही अनुसरण भी हो रहा है .चूंकि आपने और देबाशीष दा ने कहा कि सिर्फ़ तारीफ़ नहीं..सुझाव और त्रुटियों की ओर भी इशारा हो..आशा है इस दिशा में कारगर प्रयास होंगे.पाड भारती सुनने मे वाक़ई मज़ा आ रहा है.
चंद्र प्रकाश, May 31st, 2007
सर, बेहतरीन है। आज पहली बार सुना। शायद आप लोग खुद नहीं जानते कि आप लोग ये क्या कर रहे हैं। रेडियो की तरह हो कर भी अनौपचारिक अंदाज ही आपके इस पॉडकास्ट की खूबी है। वैसे पॉड का क्या मतलब है? मुझे पता नहीं इसलिए पूछ रहा हूं।
देबाशीष ने कहाः शुक्रिया चंद्रप्रकाश! POD शब्द Playable on Demand से बना है, जो कि iPod से लोकप्रिय हुआ।
Amitabh Soni, Jun 2nd, 2007
Excellent…! I am very impressed with your work.
Ramrotiaaloo, Jun 14th, 2007
आप लोगों का यह प्रयास बहुत सराहनीय है. कृपया मुझे भी राह दिखाएं कि मैं इस तरह का प्रयास कैसे शुरू कर सकता हूं.
Dhananjay V.R., Jun 17th, 2007
Brilliant Work. Such path breaking stuff will hopefully get the vernacular Internet going.