अंक 1 : मुहल्ला ट्राँसलिट्रेशन वाला

Watch

Listen


प्रस्तुत है पॉडपत्रिका पॉडभारती का पहला अंक। कार्यक्रम का संचालन किया है देबाशीष चक्रवर्ती ने और परिकल्पना है देबाशीष और शशि सिंह की। अप्रेल 2007 के इस प्रथम अंक में आप सुनेंगे।

  • हिन्दी चिट्ठाकारी ने अप्रेल 2007 में चार साल पूरे किये हैं। ये फासला कोई खास तो नहीं पर कई लोग इसी बिना पर पितृपुरुष और पितामह कहलाये जाने लगे हैं और अखबारों में छपने लगे हैं। पॉडभारती के लिये चिट्ठाकारी के इस छोटे सफर का अवलोकन कर रहे हैं लोकप्रिय चिट्ठाकार अनूप शुक्ला
  • गूगल के हिन्दी ट्रांस्लिट्रेशन टूल के प्रवेश से हिन्दी चिट्ठाकारी को एक नया आयाम मिला है। इस टूल के बारे में और जानकारी देंगे टेकगुरु स्व. रविशंकर श्रीवास्तव
  • मोहल्ला हिन्दी का एक नया पर चर्चित ब्लॉग है। यहाँ इरफान के हवाले से लिखे एक लेख ने ऐसा हंगामा बरपा किया कि हिन्दी चिट्ठाजगत ही ध्रुवों में बंट गया। बहस वाया सांप्रदायिकता लानत मलानत और एक दूसरे के गिरेबान तक जा पहूंची। मुहल्ला पर अविनाश के माफ़ीनामे तक से मामला अब तक ठंडा नहीं पड़ा। इसी संवेदनशील विषय पर सुनिये पॉडभारती के शशि सिंह की खास रपट।

Comments from the old blog

जगदीश भाटिया (May 5th, 2007)

अचानक भटकते भटकते यहां आ पहुंचा और बहुत ही सुखद अहसास हुआ। बहुत ही खूबसूरत और पूर्णतः प्रोफेशनल प्रस्तुति। किसी भी अच्छे स्तर के रेडियो कार्यक्रम से भी बेहतर। जब देबाशीष और शशि सिंह जैसे धुरंधर मिलेंगे हमें ऐसा ही शानदार तोहफा मिलेगा। बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन प्रयास के लिये।

नीरज दीवान (May 6th, 2007)

बहोत शानदार प्रस्तुति. साफ़ औपचारिक और सटीक.. मानो रेडियो सुन रहे हों. पूरी तैयारी के साथ मैदान मार लिया. देबाशीष इसके लिए बधाई के पात्र हैं. फुरसतिया जी का प्रेक्षण और आंकलन साफ़गोई से कही गई बात है.

रवि रतलामी वाक़यी टेकगुरू है. हमारे चिट्टाजगत के अनमोल रत्नो मे से एक हैं. ये विधि जो उन्होंने बताई है वह नए चिट्टाकारों के लिए दिलचस्प और जानकारी वर्धक है.

आकाशवाणी भोपाल पर एक प्रोग्राम आता था. श्रमिक जगत .. मुझे पसंद रहा है. आज उसकी याद आ गई.

रवीश की बात सही है. विवाद होना ही था. मेरा विचार है कि विवाद होने चाहिए किंतु व्यक्तिगत आक्षेप वहां होता है जहां विचार ठहर जाते हैं. तर्क कम पड़ जाते हैं. किसी को नीचा दिखा तो कौन-सा तीर मारा? मज़ा तो तब है जब दिल जीतें फिर रहा बाक़ी विचार तो कुत्ती चीज़ है.. विचार बाद मे खुद-ब-खुद पूछ हिलाते हुए आ जाएगा.

पॉडभारती शुरू हुआ है. इसे अंक से नहीं बल्कि विविध स्तंभों से पहचाना जाए. चिट्ठाजगत मे कई रंग हैं. कई स्तंभ शुरू किए जा सकते हैं. मसलन.. चिट्टानामा, मिलिए चिट्ठाकार से, इनकी पसंद, सुनो टेकगुरू, नए चिट्ठाकार वगैरह वगैरह

रवि (May 8th, 2007)

पॉडकास्ट सुनकर एक ही प्रतिक्रिया ध्यान में आई – जबरदस्त! शशिसिंह जी तो मीडिया में है ही, देबाशीष जी को भी अब मीडिया में आ जाना चाहिए :)

कुछ कमियों की ओर इंगित करना चाहूँगा -

  • देबाशीष के इंट्रो के समय पार्श्व संगीत तेज था – धीमा हो तो अच्छा
  • हर वार्ता खंड के लिए अलग से प्लेयर लगाया जाए. जरूरी नहीं है कि मैं पूरी बकवास (? :) ) सुनूं.
  • हर वार्ता खंड के लिए एक डाउनलोड कड़ी दी जाए ताकि मैं उन्हें डाउनलोड कर रख लूं और कहीं आते जाते अपने मोबाइल एमपी3 प्लेयर में सुनूं – पॉडकास्ट का इससे बेहतर इस्तेमाल और हो ही नहीं सकता.

अंत में, पॉडभारती से जुड़े सभी बंधुओं को बधाई व शुभकामनाएं.

रवि (May 8th, 2007)

पिकल प्लेयर पर नेविगेशन बटन नहीं आता है क्या? यदि ऐसा है तो कोई दूसरा प्लेयर लगाया जाए जिसमें नेविगेशन बटन हो – दो बार इंटरनेट टूटा तो इसने पूरा पॉडकास्ट नए सिरे से सुनाया :(

जीतू (May 8th, 2007)

पॉडभारती एक बहुत ही सुन्दर प्रयास है। इसे लगातार जारी रखा जाए। बहुत ही प्रोफ़ेशनल प्रस्तुति है। यह दर्शाता है कि हिन्दी चिट्ठाकार किसी भी मायने मे किसी से कम नही है। तरकश और पॉडभारती अब दो दो रेडियो हो गए है, ब्लॉग नाद की कमी नही खलती। लगे रहो।

देबाशीष और शशि भाई को बहुत बहुत बधाई।

संजय बेंगाणी (May 8th, 2007)

हमरी बधाई टिका लो. बाकि पूरी जाँच पड़ताल के बाद लिखेंगे. :)

तो यहाँ व्यस्त थे इतने दिनो :)

Pankaj Bengani (May 8th, 2007)

बहुत बधाई, शशिजी. पार्श्व संगीत बहुत अच्छा है. :)

Pramendra Pratap Singh (May 8th, 2007)

बधाई व शुभकामनाऐं।

Pratik Pandey (May 8th, 2007)

बेहतरीन प्रयास… साधुवाद।

हिंदी ब्लॉगर (May 8th, 2007)

बहुत बढ़िया. तकनीकी रूप से तो बेहतरीन प्रस्तुति है ही, सुनने लायक़ भी है. उम्मीद करता हूँ आगे से संस्मरणों को भी स्थान देंगे. बहुत-बहुत बधाई!

नासिरूद्दीन हैदर खां (May 8th, 2007)

भाई, पॉडभारती के सभी दोस्‍तों को ढेर सारी बधाई। अपने महत्‍वपूर्ण काम किया है। मुझे आईआईएमसी में पढ़ाई के दिनों की याद ताजा हो गयी जब हम सीख्‍ाने के लिए रेडियो के प्रोग्राम बनाया करते थे। आपने दबी हुई ख्‍वाहिश फिर जगा दी है। मैंने आपके तीनों प्रस्‍तुतियॉं पूरी सुनीं। अनूप शुक्‍ला और रविशंकर श्रीवास्‍तव की प्रस्‍तुतियों की जानकारी सुनने वालों के काफी आयेंगी। इनमें सूचनाएँ भी हैं और जानकारी भी। मोहल्‍ला विवाद पर संतुलित प्रस्‍तुति की कोशिश हुई है। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि हम दुनिया भर से लोकतांत्रिक होने, उदार होने, असहमति को जगह देने की बात करते हैं लेकिन क्‍या वाकई में हम खुद असहमति को जगह देते हैं, हम उस विचार को सुनते हैं जो हमारी सोच से मेल नहीं खाता। जरूरत इस बात की है कि हम असहमति को जगह देने की आदत डाले तभी हम लोकतांत्रिक हो सकते हैं। लोकतंत्र प्रैक्टिस की चीज है यानी व्‍यवहार में उतारने की चीज। उम्‍मीद है आने वाले संस्‍करणों में हमें जानकारी और रोचक सामग्री सुनने को मिलेगी। हां एक सवाल, क्‍या इसे डाउनलोड करके नहीं सुना जा सकता।

सृजन शिल्पी (May 8th, 2007)

पॉडभारती के शुभारंभ पर इसकी टीम को बहुत-बहुत बधाई। शुरुआत शानदार रही है और पूरी आशा है कि हिन्दी पॉडकास्टिंग के क्षेत्र में शानदार कीर्तिमान रचने का यह सिलसिला बुलंदियों तक पहुंचेगा।

दिल्ली के चिट्ठाकारों की टीम भी इसके लिए ऑडियो कंटेंट प्रदान कर सकती है।

समीर लाल (May 8th, 2007)

पॉड भारती का प्रथम अंक सुनकर आनन्द आ गया. बहुत ही प्रोफेशनली प्रस्तुत किये गये सभी विषय पसंद आये. पॉड भारती के सुनहरे भविष्य के लिये अनेकानेक शुभकामनायें एवं इस प्रस्तुतिकरण के लिये बधाई.

जयप्रकाश मानस (May 8th, 2007)

पौड भारती निश्चित ही ऐतिहासिक कार्य के रूप मे श्री गणेश हुआ है । मैं शशि सिंह जी को बधाई देना चाहता हँ जो उन्होंने मुझे इसकी सूचना दी । इस अंक में तीनो टिप्पणियाँ सार्थक, विचारोत्तेजक और ज्ञानवर्धक हैं । रवि जी की ज्ञानदान के लिए विशेष आभार कहना चाहता हूँ । ऐसे व्यक्तित्व बार-बार हिंदी भूमि में जन्में और जन्में । यह धरा हिंदी के लिए समर्पित लोगों से भरा पड़ा है पर रवि जैसे कम लोग ही नजर आते हैं ।

ब्लॉगिंग को लेकर ऐसे विवादों को बड़ी तरजीह देकर बहुप्रचारित बनाना भी विवादों को बढ़ाते रहना है । मेरे मत से ऐसे खुराफाती कर्मों की सबसे बड़ी आलोचना उसकी उपेक्षा होती है । कि उसका जिक्र ही नहीं किया जाय । कि उसे इस तरह से किसी शुभ शुरूआत में प्रसारित ही न किया जाय । मुझे इसे पहले ही अंक में देने से कोई आपत्ति नहीं है । पर यह भी एक मार्ग हो सकता था । होता क्या है कि माध्यमों में ऐसी कृष्णवर्णीय बातें आती रहती है तो घाव फिर हरे हो जाते हैं । एक खास बात कि यह तो होता ही रहता है । मानव का स्वभाव ही वर्चस्वभरा होता है । सारी सभ्यता वर्चस्व के लिए संघर्ष भरा है । सारा इतिहास ही वर्चस्व के लिए लड़ाई भरा हुआ है । याद दिलाना चाहता हूँ कि सबसे पहले कहा गया एकोहम् द्वितीयोनास्ति । जानते हैं ही है कि फिर दुर्गा सप्तशती में दुर्गा ने कहा कि जो भी है मैं ही हूँ और कोई नहीं । खैर…. उपेक्षा करना सीखना होगा हम ब्लागरों को । और यह हिंदी की ही संस्कृति है । हमें इस बात को लेकर कोई लेना देना नहीं है अनूप बड़े या रवि । आदमी बड़ा नहीं होता । उसके भीतर किसी भाषा या समाज या संस्कृति के उन्नयन के लिए कितनी पुलक और ललक है यही बड़ा होता है । यही मेरी व्यक्तिगत मान्यता है । यूँ भी ब्लाग हमारी देन नही है । जैसे कि हिंदी में निबंध और हाइकु हमारी निजी नहीं है । हमने सबसे पहले अंग्रेजी से ली । उस दौर में भी यही चलता था कि कौन पहला निबंधकार ? पर शनै-शनै यह कुहाँसा छटता चला गया । यह हिंदी ब्लॉगिंग में भी हो रहा है । इतिहास ब़ड़ा नही होता सदैव उसका भविष्य बड़ा होता है जिसके लिए हम सदैव सक्रिय रहते हैं या चिंतित रहते है ।

मेरी सबसे बड़ी चिंता है भाषा को लेकर । कहने को चार साल हुए हैं । हिंदी ब्लॉगिंग को । पर जिस तरह से भाषा हमारी विकृत हो रही है वह नयी पीढ़ी के लिए एक खतरनाक पाठ भी है । भाषा केवल अभिव्यक्ति होती तो उसे छोड़ दिया जाता । वह मनुष्य के होने की दशा भी है । हम जो हैं वह भाषा में है । हमारे पास जो है यानी कि सभ्यता वह भी भाषा में है । भाषा मनुष्यता का रचाव है । ब्लॉग को प्रजातांत्रिक अभिव्यक्ति -स्वतंत्रता का विकल्प मान लेने भर से हिंदी का भविष्य नहीं सुधरने वाला । वहाँ एक आत्मानुशासन भी चाहिए । जहाँ आत्मानुशासन नहीं होता वहाँ अराजकता व्याप्त हो जाती है । मैं मानता हूँ कि अभी ब्लॉग के लिए व्याकरण की अति आवश्यकता नहीं है । पर मित्रों, शिशु को तीन साल से ही भाषा का अनुशासन सिखाया जाता है । पाठ पढ़ाया जाता है । धीरे-धीरे उसकी तुतलाहट और अनुशासनहीनता पर परिजन लगाम लगाने लगते हैं । तभी वह परिवार की भाषा जान पाता है । स्वयं को जान पाता है । परिवार को जान पाता है । चीजों, समाज, गली, मौहल्ला, देश-दुनिया और तमाम बातों को समझ पाता है कि वह कहाँ है ? क्या है । उसके होने का मतलब क्या है ? आचार-विचार स्वयंमेव नहीं विस्तारित होता है । बल्कि मां, परिजन, सहपाठी, गुरूजन, मित्र आदि से वह धीरे-धीरे सीखने बुझने लगता है । तो जिस तरह से अनेक ब्लॉग लिख रहे हैं वह हिंदी के भविष्य के लिए कहीं खतरा न साबित हो । यह भी देखना सयाने लोगों का कर्तव्य होना चाहिए ।

यह बात अलग है कि ब्लॉग पर अधिकांश कर्मशील युवा हैं । कंप्यूटर में विशेषज्ञता और अंगरेजी वातावरण यानी कि शहर से आये हैं । आ रहे हैं । यह भाषा का सच है कि नागर भाषा में विचलन अधिक और सरलता से होता है । जिसे हम ग्रामीण भाषा कहते हैं वहाँ की भाषा संस्कार का एक अंतर्लय होता है । यह शहर-नगर में कम होता है । फिर यहाँ लिखते वक्त लगता है कि वह उतना सार्वजनिक नहीं है जितना वाचकता में है या प्रिंट में है । प्रिंट में लिखते वक्त हम ज्यादा मनोवैज्ञानिक दबाब में रहते हैं वनिस्पत एक ब्लॉग के । यह भी शायद इसका कारण है कि यहाँ भाषा में विविधता है । वैसे विविधता भाषिक संस्कार के लिए खतरा नही है । स्वयं हिंदी कई लोकभाषाओं का रसायन है । पर जिस तरह से एक ब्लॉग खासकर सार्वजनिक ब्लाग की भाषा होनी चाहिए उसके निगरानी के लिए अभी नामवर सिंह आना शेष है । जाहिर है कि अभी इन ब्लॉगों पर भाषाशास्त्रियों, विद्वानों की नजर नहीं पड़ी है । आप कह सकते हैं यहाँ तो अमुक अमुक पत्रकार भी लिख रहे हैं । मित्रों मैं क्षमा चाहूँगा । पत्रकारिता तुरत-फूरत में रचा गया साहित्य है । वहाँ भाषा की मर्यादा कम होती है । वहाँ हर बात तात्कालिकता से घटती है । एक संकट यह भी है कि हिंदी ब्लॉग का बहुलांश युवा अभिव्यक्ति का नायाब नमूना है । यह सच है कि युवा नया समाज रच सकता है । वह नयी भाषा भी गढ़ सकता है । पर मैं अंतिम वाक्य के रूप में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि युवा कम से कम भाषिक रूप से कम संपन्न होता है । खासकर आज जिस तरह की भाषिक-संस्कृति समूचे देश में फैल रही है, जिसमें फिल्मों, अंग्रेजी, मीडिया, इंटरनेट आदि है, जो प्रकारांतर से विश्व बाजार की घिनौनी चालों के तहत हमारे मन-मस्तिष्क में बैठायी जा रही है । वह कम खतरनाक नहीं । बाजार विज्ञापन के सहारे चल सकती है, समाज नहीं, देश नहीं, संस्कृति नहीं । आइयें चिंतन करें । और इन मुद्दों के तहत भी भविष्य में हम ब्लागों पर गौर करें । मात्र हिंदी की देवनागरी लिपि में लिखी-रची जा रही सामग्री पर हम न गद्-गदायमान हों । यह न मेरा प्रलाप है और न ही भाषण । यह मेरा निजी विचार है । और जिसे मैं कहना अनुचित नहीं समझता ।

श्रीश शर्मा (May 8th, 2007)

अरे वाह हिन्दी ब्लॉग्स.ऑर्ग के साथ साथ पॉडभारती, देबु दा के दो-दो तोहफे एक साथ। बहुत बहुत बधाई देबु दा और शशि भाई को इस प्रोजैक्ट के लिए। नीरज दीवान ने लिखा:

पॉडभारती शुरू हुआ है. इसे अंक से नहीं बल्कि विविध स्तंभों से पहचाना जाए. चिट्ठाजगत मे कई रंग हैं. कई स्तंभ शुरू किए जा सकते हैं. मसलन.. चिट्टानामा, मिलिए चिट्ठाकार से, इनकी पसंद, सुनो टेकगुरू, नए चिट्ठाकार वगैरह वगैरह

मैं नीरज भाई से सहमत हूँ। अंकों को नाम से वर्गीकृत किया जा सकता है।

श्रीश शर्मा (May 8th, 2007)

इस पॉडकास्ट में तीन वार्ताएं थीं। तीनों को तीन फाइलों में अपलोड करके तीन प्लेयरों में लगाया जाना चाहिए था। यदि हो सके तो कोई मल्टीएपिसोड पॉडकास्ट प्लेयर प्रयोग किया जाए। अब इस पॉडकास्ट की तो कोई बात नहीं पर आगे से अलग अलग वार्ता खंडों के लिए अलग अलग प्ले और डाउनलोड करने का विकल्प हो तो बेहतर।

पिकल प्लेयर पर नेविगेशन बटन नहीं आता है क्या? यदि ऐसा है तो कोई दूसरा प्लेयर लगाया जाए जिसमें नेविगेशन बटन हो – दो बार इंटरनेट टूटा तो इसने पूरा पॉडकास्ट नए सिरे से सुनाया :(

रवि जी प्लेयर पर किसी भी जगह क्लिक कीजिए, वहीं से प्ले शुरु हो जाएगा।

Pramod Singh (May 8th, 2007)

अच्‍छा है, बंधु.

Amit Agarwal (May 12th, 2007)

Excellent stuff guys – flawless production, excellent voice quality and great content.

उन्मुक्त (May 12th, 2007)

बहुत बढ़िया।

संजीव कुमार सिन्हा (May 14th, 2007)

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। आपको बधाई। हिन्दी की दुनिया निरंतर बढ रही है, आप दोनों ने ऐतिहासिक कार्य किया हैं।

अनूप शुक्ल (May 16th, 2007)

बहुत अच्छा लगा सुनकर! लगा ही नहीं है कि यह हमारे साथियों की प्रस्तुति है। खासकर मोहल्ला वाला भाग सुनकर तो ऐसा लगा कि जैसे हम बीबीसी या और किसी समाचार सेवा की प्रस्तुति सुन रहे हों। नितान्त घरेलू साधन से यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है! रवि जी का लेख भी शानदार रहा! सबसे बड़ी बात कि मेरी आवाज को भी न जाने कैसे इतना सजा-संवार कर पेश कर दिया।:) बधाई। देबू और शशि को! आगे और तमाम उपलब्धियों के लिये मंगलकामनायें!

G Vishwanath, JP Nagar Bangalore (Jun 12th, 2007)

I extend a hearty welcome to this podcast. This podcast will be an inspiration to others too. Other regional language podcasts too will take birth. Blogging and podcasting will no longer be handicapped by the barriers imposed by the English language. The creative energies and talents of millions of educated Indians who are better at expressing themselves in Hindi or other regional languages will get a boost. Podcasting will now reach out to a much wider group of people, not just the English knowing among the Indian people.

I have just downloaded the first three episodes and listened to a small snatch for a few minutes and was enthralled. I will listen to with complete attention at the earliest opportunity and I look forward to more of these podcasts.

A few questions:

  • How do I type my comments in Hindi like the comments I have been reading.
  • Hindi is not my native language . Even though my Hindi is not too good, I wish to make an attempt at writing comments in Hindi. Do I need any special software?
  • I know how to use ILeap developed by CDAC, Pune and also Baraha software for typing in regional languages of India using the English Qwerty keyboard. Can I cut and paste from these applications?
  • Can the text size of the comments be increased? I find it difficult to read. The fonts are too small. I tried View–>Text Size–>Largest in Internet explorer and it did not work.

Any help or suggestions would be appreciated.

Best wishes to Debashish and Shashi and congratulations on a real innovation. This podcast deserves wide support and I will do my bit in spreading the good news and giving it wide publicity.

डा.अमर कुमार (Aug 28th, 2008)

चमत्कृत हूँ , कुछ तो है.. और यह कुछ ख़ास ही है, और ख़ासतर होता जायेगा। प्रस्तुतिकरण प्रोफ़ेशनल स्तर का है,आगे और भी सुधार तो आयेंगे ही..किंतु पो्डकास्टिंग के वैश्विक परिदृश्य पर कुछ अधिक नहीं दिखता, उपलब्ध करायें।